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महाशिवरात्रि पर्व आज, शिवालय सजे, धार्मिक उत्साह के साथ श्रद्धालु करेंगे भोले बाबा की पूजा अर्चना,

ओंकारेश्वर के साथ ही खंडवा के चारों कुंडो एवं शिवालयों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचेंगे,

एडिटर/संपादक:-तनीश गुप्ता,खण्डवा

महाशिवरात्रि पर्व आज, शिवालय सजे, धार्मिक उत्साह के साथ श्रद्धालु करेंगे भोले बाबा की पूजा अर्चना,

ओंकारेश्वर के साथ ही खंडवा के चारों कुंडो एवं शिवालयों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचेंगे,

खंडवा। दादाजी की यह नगरी प्राचीनकाल से ही तीर्थ नगरी रही है। महाभारत एवं रामायण काल के समय इस खंडवा को खांडव वन के नाम से जाना जाता था। इस नगरी का पुरातत्व विभाग एवं शास्त्रों में भी उल्लेख है। नगर में जहां भी खुदाई होती है वहां पर कहीं न कहीं देवी-देवताओं की मूर्तियां निकलती है। खंडवा के समीप नदियों में भी खुदाई के समय प्राचीनकाल की मूर्तियां निकलती है। इस नगर में पूर्वकाल से पानी की निरंतर व्यवस्था के लिए चारों दिशाओं में प्राचीन चार कुंड अपना प्राचीन इतिहास लिए आज भी मौजूद है। समाजसेवी व प्रवक्ता सुनील जैन ने बताया कि बुधवार को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर चारों कुंडो के मंदिरों के साथ तीर्थ नगरी ओमकारेश्वर, गुप्तेश्वर मंदिर रुस्तमपुर, देवझीरी, प्राचीन तिल भांडेश्वर महादेव, हाटकेश्वर महादेव, शनि मंदिर कुंडेश्वर महादेव, इतवारा बाजार महादेवगढ़ एवं खंडवा के सभी शिवालयों में श्रद्धालु भोले बाबा के दर्शन करने पहुंचेंगे,खंडवा के चारों कुंडो का एक विशेष महत्व है,पूर्व दिशा में जहां सूरजकुंड निर्मित है वहीं पश्चिम में पदमकुंड, उत्तर में रामेश्वर कुंड है तो दक्षिण में भीमकुंड स्थापित है। सुनील जैन ने बताया कि पदमकुंड का इतिहास है कि यहां पूर्व में बहुताय में कमल के फूल खिलते थे और पदम को कमल कहा जाता है और यह लक्ष्मी का प्रतीक है। इस कुंड में प्राचीनकाल की पद्मावति देवी की मूर्ति भी स्पष्ट दिखाई देती है। सूरजकुंड को यह नाम सूर्योदय को लेकर कहा गया, कहते है कि सूर्य की प्रथम किरण सूरजकुंड पर पड़ती है।रामेश्वर कुंड का महत्व यह है कि रामायण काल में वनवास के पश्चात पुष्पक विमान से लौटते समय भगवान श्रीराम सीता व लक्ष्मण इस स्थान पर रूके जहां माता सीता को प्यास लगने पर भगवान श्रीराम ने धरती पर बाण चलाकर जल की व्यवस्था की थी तब से यह रामेश्वर कुंड के रूप में विराजमान है। वहीं महाभारत काल के समय पांडव अज्ञातवास के समय इस धरती पर पहुंचे थे और भीमकुंड जहां स्थापित है, वहां भीम ने तपस्या के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी जो आज भीमकुंड के रूप में स्थापित है। चारों ओर आबना नदी से घिरे आकर्षक दृश्य के रूप में टापू निर्मित है जहां भोलेबाबा विराजमान है। सुनील जैन ने बताया कि चारों कुंडों पर शिवलिंग स्थापित है और वर्ष भर श्रद्धालु यहां दर्शन करने पहुंचते हैं वहीं विशेष रूप से महाशिवरात्रि एवं सावन के पर्व में बड़ी संख्या में शिव भक्त पहुंचकर भोलेबाबा की पूजा अर्चना कर इस स्थान पर कुछ देर रूक कर शांति का अनुभव करते हैं। आवश्यकता है इन प्राचीन धरोहरों को सहज कर रखने के लिए पर्यटक स्थल घोषित कर इनके सौंदर्यीकरण करने की। सौभाग्य से खंडवा जिले के जो प्रभारी मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी है उनके पास धर्मस्य,संस्कृति एवं पर्यटन विभाग का मंत्रालय है, जिसके माध्यम से मंत्री जी इस प्राचीन धरोहर को सहजने एवं संवारने का कार्य कर सकते हैं।

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